दुनियां भर के तनाव जब जिंदगी को थका रहे हैं,

तो आओ …….

क्यों ना, ज़िंदगी से हाथ मिलाकर हम भी कुछ देर मुस्कुरा ले …….

Sunday, July 25, 2010

जीवन में गुरु कि नितांत आवश्यकता !

गुरु भारतीय-संस्कृति कि खोज है, पश्चिम भाषाओ में तो गुरु शब्द ही नहीं था | गुरु-शिष्य परम्परा भारतीय सनातन परम्परा है | अध्यात्म प्रधान भारत देश में देव गुरु-धर्म का विशेष महत्व हैं | गुरु शब्द ब्रह्म रूप है | गुरु दहलीज के उस दीपक कि भांति है जो हमे भीतर के सच्चिदानंद स्वरूपी देवतत्व से जुड़ने के लिए धर्म मार्ग पर चलना सिखाते हैं, गुरु ही हमे देव और धर्म से जोड़ सकते हैं | "गु" यानि "गुण" और "रु" यानि "रूचि" | जो गुणों में रूचि जगाएं और दोषों से दूर भगाएं, वो गुरु ही होते है | जैसे किसी जलते हुए दीपक को देख कर बुझे हुए दीपक को ज्योतिबोध हो जाता है और वह भी प्रज्वलित हो उठता है, जैसे विस्तृत आकाश को देख कर भीतर का आकाश साकार हो उठता है | वैसे ही सदगुरु का प्रत्यक्ष दर्शन हमे स्वबोध करवाता हैं |

हमें जीवन में गुरु अवश्य बनाना चाहिए, चाहे वह माटी की मूर्ति ही क्यों ना हो | एकलव्य ने द्रोणाचार्य को गुरु मानकर, उनकी मूर्ति के सामने ही धनुर्विद्या सिखनी प्रारंभ की और एक दिन वे अर्जुन से भी अधिक प्रतिभाशाली बन गयें | अँधेरा चाहे कितना ही गहरा और पुराना क्यों ना हों, उसे दूर करने के लिए एक छोटा सा चिराग ही काफी है | बिज चाहें कितना ही छोटा क्यों ना हों, अंकुरित होने पर वही विशाल वृक्ष का रूप धारण कर लेता हैं | किसी को छोटा समझ कर उसकी उपेक्षा कभी ना करें | लघुवय में अष्टावक्र जी ने राजा जनक को आत्मबोध करवा दिया था | ज्ञानी गुरु ही शिष्य के अन्तहृदय में ज्ञान कि ज्योति को प्रज्वलित कर सकते है | " पानी पीजिए छानकर, गुरु कीजिये जानकर |" - हमे गुरु बनाना चाहिए, किन्तु गुरु आत्मज्ञानी, निष्पक्ष, विशिष्ट व श्रुतज्ञानी होना चाहियें | आज चंहुओर नामधारी और वेशधारी गुरुओं की भरमार हैं, किंतु सच्चे आत्मज्ञानी के दर्शन दुर्लभ हो गये है | सच्चा गुरु तो वही है, जिसके वचन शिष्य के भीतर की ग्रंथियों और जन्म-जन्म से पड़ी गांठों को खोल दें |

एक रोचक प्रसंग है - एक सन्यासी ने एक युवक को गुरु का महत्व समझाते हुए अपना शिष्य बना लिया और कहाँ - "अब तुझे मुक्ति मिल जायेगी" यह सुनते ही युवक उठ कर जाने को तत्पर हुआ तो सन्यासी ने कहाँ - "अरे भाई ! कहाँ चले, गुरु दक्षिणा तो देते जाओ " चतुर शिष्य बोला - " अच्छा गुरूजी ठीक है, दक्षिणा में मै आपको दिल्ली देता हूँ" सन्यासी बोला - "क्या दिल्ली तेरे बाप की है ?" युवक ने तपाक से जवाब दिया - "तो क्या मुक्ति आपके बाप की है ?" यह सुन कर सन्यासी मुहँ उतर गया !

तनिक विचार करें, जो अपने शिष्यों से मोटी दक्षिणा पाना चाहतें है क्या वें सच्चे गुरु हो सकते हैं | गुरु तो वो है जो शिष्य के सर्वस्व समर्पण करने पर भी उदासीन एवं निर्लिप्त रहें |

वैसे शिष्य भी कमतर नहीं है, वे गुरु को तो मानते है, किंतु गुरु कि नहीं मानतें | अगर धर्म-गुरुओं की आज्ञा का पालन श्रद्धा से किया जाएँ तो कहीं भी हिंसा और पाखंड का नामोनिशान ना रहें, अन्याय एवं अत्याचार प्रभावी ना हों | गुरु की खोज परमात्मा कि खोज है | गुरु कि खोज वही करता है जिसके भीतर परमात्मा प्राप्ति की प्यास हैं | गुरु से ही हम जीवन निर्माण कि कला सीख सकते है, क्योकि गुरु परमार्थ से जुड़ा रहता है | वे मोक्ष मार्ग के पथप्रदर्शक होते हैं, वे ही मोक्ष का द्वार हैं | गुरु व्यक्त और अव्यक्त रूप से समग्र विश्व में व्याप्त है, वे असहज प्राप्ति को सहज बनाते है !

जय, गुरु देव !

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