बस एक कलाई और एक डोर !
किसी शब्द की जरुरत नहीं, किसी संवाद की आवश्यकता नहीं !
सिर्फ एक कच्चा धागा, भाई-बहन के प्यार का अटूट बंधन !
क्या, इतना सीधा और सरल हो सकता है कुछ और ?
अहा ! लो आ ही गया !! चिर-प्रतीक्षित, स्नेह का प्रतिक, ये सुमंगल पर्व रक्षा-बंधन !
सावन की मीठी-मधुर रिमझिम फुहारों के साथ आता है स्नेह के धागों का यह मौसम, भाई-बहन के अटूट संबंध, प्यार और खुशियों का मौसम ! एक ऐसी अटूट परंपरा का मौसम जिसने सदियों से हमारे देश में भाई-बहन के रिश्ते को स्नेह और कर्तव्य के कोमल धागों में पिरोया हुआ है ! जहां भावो की विद्युत तरगें भू-मण्डलीय वायु से प्राणवायु में प्रवाहित हो सदा आनंन्दोलित करती हों, वहाँ भावो को प्रकट करने हेतु शब्दों के लियें कोई स्थान नहीं ! ये रक्षा-सूत्र सदा भावनाओं में ऊष्मा के स्तर को बढ़ा देते हैं और इनके कलाई पर बंधते ही प्राप्त होता है, आत्म तृप्ति का एक ऐसा अनुभव जो अमृततुल्य हैं ! कोई आँख से देख नहीं सकता इस जज्बें को क्योकिं यह तो एक एहसास हैं, कोई अंदाज नहीं !
अनमोल स्नेहाशिर्वाद की मृदुल ज्योत्सना से परिपूर्ण एवं विश्वास की प्रतिक है यह राखीं ! खुद ही विचार कर के देखें की आधुनिकता के एस दौर में, परिवार के ही भाई-बहन को “कजिन” कहने वालों में क्या ये रेश्मीं धागें कभी ममेरें-चचेरे हो पाते हैं ! दिल की अनंत गहराइयों, को छु जाने वाला त्यौहार हैं राखीं, जब आती है राखीं, तो, आँख है भर आती ! यह राखी का रिश्ता समय से साथ बदलता नहीं बल्कि और गहराता जाता हैं ! यह परम्पराओं और अंधविश्वास की रुढियों से कहीं ऊपर उठ कर हैं ! हर परिभाषा से परे है ये मधुर संबंध, जो अत्यंत ही उत्साहवर्धक हैं ! यह भी शाश्वत सत्य हैं कि ऐसे सबंधों से व्यक्ति के गुण बाहर आते हैं, मन की परेशानियां दूर होती हैं एवं हमारे जीवन में जीवंतता वापिस आती हैं ! उत्साह बढ़ने से न केवल स्वस्थ संबंधों की बुनियाद पड़ती है बल्कि हम सफलता की उचाईयों को भी छूते हैं !
जिस प्रकार सूरज से अच्छा सितारा कोई और नहीं, उसी प्रकार पूरी कायनात में इस रिश्तें सा प्यारा रिश्ता भी कोई और नहीं ! एक डोर वाले इस त्यौहार के मायने महज रस्मी नहीं हैं, कितने ही भाई हन ऐसे होंगें जो पूरे साल इस धागें को अपनी कलाई से अलग नहीं होने देतें और बहनों का तो कहना ही क्या, जब तक भाई की कलाई को रेश्म की डोर से ना सजा ले अपना मुहँ झूठा नहीं करती ! भाई-बहन का यह संबंध जितना अनूठा है उससे भी अधिक अद्भुत है उसकी भावना ! इसके अभाव की पीड़ा तो वहीँ महसूस कर सकते हैं, जिनकी कलाई में स्नेह का यह बंधन बांधने वाला कोई नहीं हैं या जिसके पास ऐसी कोई कलाई नहीं ! खुशनसीब हैं वे लोग जिन्हें मिला हैं यह अनमोल गहना, इसे कभी अलविदा न कहना !
इन रेश्मीं धागों से प्राप्त संबल, अनुभवगम्य !!
एक सुखद एवं सौम्य अनुभूति, एक अनमोल सौगात !!!
सभी भई-बहनों को इस सुमांगलिक पर्व पर हार्दिक शुभकामनायें !