रिटायरमेंट स्पीच
रिटायरमेंट... यानि अंतिम दिन... यानि अब विदा लेने का समय आ गया... यानि एक यात्रा का अंतिम दिन और अंतिम विदा की तैयारी|
आज, मेरे जीवन के उत्तरार्ध में मेरे शेष जीवन का प्रथम दिन है... यह स्वर्णिम है...
बीते जीवन को मैंने पूरी आत्मीयता, समर्पण और पूरी तरह से खुल कर जिया है-- किसी की शर्तों पर नहीं, अपने स्वयं के सिद्धांतों, जीवन मूल्यों, आत्मसम्मान और गर्व के साथ जिया है... भरपूर जिया है!
जीवन शर्तों पर नहीं जिया जाता... जीवन में जीवन्तता, उमंग और सार्थकता का होना बहुत आवश्यक है!
जब कभी हम अपने जीवन की कहानी (जीवन-गाथा) लिखेंगे, उसमें कुछ ऐसे नाम होंगे, जिनसे जाने-अनजाने में हमारे रिश्तों की डोर बंध गई...
जिन्होंने हमें जीवन के मूल्यों, संस्कारों और आत्मसम्मान से जीने का पाठ पढ़ाया... जो हमारी मुस्कान की वजह बनें...
कभी किसी पड़ाव/मोड़ पर हमें कुछ खट्टे-मिट्ठे, अच्छे-बुरे अनुभव हुए...
हमे किसी ने हँसाया, किसी ने रुलाया, किसी ने गिराया... और किसी ने संभाला भी...
इन्हीं अनुभवों के साथ हम जीवन के सफर में आगे बढ़ते चले गए...
और फिर... अब आगे कोई एक “अंतिम दिन” ऐसा भी आएगा-- जो हमारी रिटायरमेंट का होगा...
वह अंतिम घड़ी जब हमारी जीवन-पटकथा का अंतिम दृश्य लिखा जाएगा...
और मजे की बात ये होगी...
उस दिन हम खुद अपनी “रिटायरमेंट स्पीच” नहीं दे पाएंगे, हमारे पूरे जीवन की पटकथा ही हमारी रिटायरमेंट स्पीच होगी |
तो क्यों न हम आज ही अपनी उस रिटायरमेंट स्पीच की रूपरेखा स्वयं ही रच लें?
जिन पलों को हमें अभी जीना शेष है, उन्हें हमें स्वयं ही गढ़ना है, स्वयं ही लिखना है...
गजब है भई यह तो !! यह कमाल की बात है-- जब हमारे जीवन की पटकथा हमारे ही हाथ में है, तो क्यों न हम इसे सबसे सुंदर, सबसे सार्थक लिखें...
हाँ... यह आसान नहीं... एक चुनौती की तरह हो सकता है...
यहाँ हमारा अनुभव हमें दिशा दिखलाएगा... इसलिए, हमारे पास अपने बारे में कहने-सुनने के लिए कुछ (या बहुत कुछ?) तो होना ही चाहिये !
हम सभी मानते है की यह संसार एक रंगमंच है, और हम सब कलाकार इस रंगमंच पर एक नाटक के रूप में ये जो अपना जीवन जी रहे है...
इसकी स्क्रिप्ट लिखने वाला तो कोई और ही है... पर क्या वाकई हमारी स्क्रिप्ट किसी और ने लिखी है ?
अगर ऐसा है... तो फिर हमें अपनी भूमिका कैसे निभानी है, इसकी कोई स्क्रिप्ट हमें क्यों नहीं मिली?
दरअसल, हमें अपना पात्र कैसे निभाना है यह तो हम स्वयं ही तय कर रहे है...
जब हमे ही सब तय करना है, तो क्यों ना इस रंगमंच पर अपनी भूमिका को प्रभावी, गरिमामय बनाकर एक अच्छा स्वरूप प्रदान करें...
जिससे हमारी अदाकारी प्रेरक एवं आत्मविश्वास से भरपूर हो...
और, जब हम अपनी कहानी/पटकथा खुद लिखेंगे... तो उसमें सुंदरता, प्रेम और अपने सपने भरेंगे...
पर तनिक ठहरिए...
जो जीवन बीत गया उस पर एक नज़र डाल लेते है..
कहीं ऐसा तो नहीं की हमारा जीवन केवल कुछ घटनाओं, कुछ तारीखों का संग्रह ही बन कर रह गया हो ?
या फिर संघर्ष और आपाधापी के बीच यह जीवन जीते जीते हम स्वयं को ही न खो बैठे हो?
क्या हम कभी उन्मुक्त होकर, स्वयं के लिए जी पाए है?
याद रखें... सफल लोग अपना भविष्य/जीवन स्वयं अपने पुरुषार्थ से रचते है...
वे कड़ा संघर्ष कर अपनी हस्तरेखाओं का निर्माण स्वयं करते है...
वहीं, कुछ लोग यह समझ ही नहीं पाते की वास्तव में वे अपने जीवन में हासिल क्या करना चाहते है?
उनके जीवन का लक्ष्य क्या है?
क्या हम अपने जीवन जी पटकथा लिखते समय यह स्पष्टता से लिख पाएंगे की वास्तव में हम चाहते क्या है ?
हमे किसी को चमत्कृत नहीं करना है...
पर हमारे जीवन में हमारे पास इतना तो हो जो हमारी "रिटायर्मेंट स्पीच" को सुन्दर, सार्थक और प्रेरक बना सकें...
हमने किससे क्या सीखा --- उनके प्रति आभार...
हमसे जाने-अनजाने जो भूल या गलतियाँ हुई --- उनके प्रति खेद...
यह हमारी जीवन गाथा का हिस्सा होना ही चाहिए...
और सबसे जरूरी --- हमारी स्वयं की पहचान, हमारा खुद का स्थान...
अपनी ही कहानी में खुद के लिए एक सशक्त एवं सुगंधित स्थान अवश्य बनायें, यह नहीं की हमारा खुद का कोई जीवन नहीं...
हम तो अपना जीवन जी चुके अब तो केवल परिवारिक जिम्मेवारियां ही निभानी है ...
नहीं!
अपनी कहानी में अपने सपने भी लिखिए...
तभी तो जीवन को सही दिशा और लक्ष्य मिलेगा...
आखिरकार, हमारे उन सपनों में हमारा परिवार तो शामिल है ही...
पर, हमारे परिवार में हमारे सपनों के लिए भी जगह होनी चाहिए...
हमारा व्यक्तिगत जीवन भी तो मायने रखता है...
यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारा यह जीवन भी महत्वपूर्ण है.. अनमोल है...
इस जीवन में बहुत कुछ ऐसा होगा, जो हमारी पसंद का नहीं होगा, हमारे अनुकूल नहीं होगा...
और जिसे बदल पाना भी हमारे लिए संभव नहीं होगा...क्योंकि बहुत कुछ तो नियति पर भी निर्भर है...
तो, जो आप बदल सकते हैं, जो कर सकते है... और आपकी पसंद के वे बहुत सारे कार्य जो आप कर सकते है--- जरूर करें...
हमारे जीवन में आने के लिए खुशियाँ हमेशा हमारे दरवाज़े के बाहर खड़ी रहती है... कृपया दरवाज़ा खोले और उन्हें भीतर आने दें...
हमें बेहतर मालूम होना चाहिए की हम किन किन बातों में अच्छे है... और क्या क्या बेहतरीन कर सकते है...
“इत्र से कपड़ों का महकना कोई बड़ी बात नहीं, मज़ा तो तब है, जब आपके किरदार से खुशबू आए...”
तो आइए...
हम अपना श्रेष्ठतम दें...
अपनी जीवन गाथा ऐसी लिखे...
कि जीवन के रंगमंच पर जब हमारा नाटक समाप्त हो...
तो, उस क्षण दर्शक कहें --- “ इस पात्र का जीवन सार्थक और प्रेरक था ...”
उस समय किसी औपचारिक विदाई की आवश्यकता नहीं होगी ..
और हमारी रिटायरमेंट स्पीच -- एक सुंदर और प्रेरक रचना बन जाएगी..
और क्यों न बने...! इस जीवन के बाद, इस नाटक के बाद... दर्शकों की तालियाँ भी तो जोरदार मिलनी चाहिए .. मिलनी चाहिए या नहीं... ?
एक विचारक,
प्रमोद जैन, भोपाल
9691916053